शनिवार, 11 दिसंबर 2010
आशुतोष झाआजादी के बाद कांग्रेस की रणनीति में कोई मजबूत विपक्ष देश में ऊभर कर सामने नहीं आये यह नेहरु काल से ही कांग्रेस का राजनीतिक ऐजेण्डा रहा है। कमजोर विपक्ष के साथ कांग्रेस को काम करने का एक लंबा अनुभव है। लेकिन आज जब भाजपा एक मजबूत विपक्ष के तौर पर उसके सामने खड़ी है तो वह अपने उस 40-45 सालों के शासन का अनुभव व स्वाद नहीं ले पा रही है, जो उसने कल तक लिया था। कांग्रेस की तुलना में भाजपा का पूरे देश में एक मजबूत संगठन उसे आज अखड़ रहा है। अटल जी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार का चलना और देश के कई राज्यों में भाजपा का शासन उसे असहज बनाये हुये है। लंबे समय तक केंद्र व प्रदेश में एक-छत्र राज करने वाली कांग्रेस को यह नागवार लग रहा है कि उसका सामना एक मजबूत पार्टी व विपक्ष से है। इसलिए भाजपा शासन व पार्टी को वह बदनाम करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है। इसके लिए वह सीबीआई का भरपूर मदद ले रही है। सीबीआई के बल पर वह भाजपा नेताओं, मुख्यमंत्रियों व कार्यकर्ताओं को डराने-धमकाने में जुटी है। भाजपा राज्य में कई ऐसे मामले उभर कर सामने आये, जिसका निबटारा वहां की राज्य पुलिस व जांच ऐजेन्सियों द्वारा संभव था बावजूद दिल्ली में सत्ता की धाक की बदौलत वह उस मामले को सीबीआई या संसदीय जाँच समिति से कराने की सिफारिश कर भाजपा सरकार को बदनाम करने का काम करती है। आज भी कर रही है। कोई मजबूत कारण नहीं, बल्कि केवल यह कहना कि इस शासन में न्यायसंगत न्याय व निर्णय संभव नहीं है इसलिए वहां के मुकदमे की सुनवायी गुजरात से बाहर करायी जाय। कांग्रेस के लिए भाजपा को बदनाम करना एक रुटीन जैसा बन गया है। गुजरात में आतंकवादियों को मुठभेड़ में मारने वहां के पुलिस अधिकारियों को जेल की सजा भुगतनी पड़ रही है, वहां के गृहमंत्री तक को जेल भेजने का काम सीबीआई ने कांग्रेस के ईशारे पर किया। राज्य की खुफिया व सभी जांच ऐजेंसियों को पूरी तरह से बदनाम करने का काम इस केंद्र की सरकार ने किया है। यहाँ तक की गुजरात की अदालत से भी वहाँ के लोगों का विश्वास समाप्त हो प्रयास किया गया। वहीं बात एक बार जो नेहरु ने किया वहीं आज मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी कर रही है। कांग्रेस को यह जबाव देना होगा कि जिस सीबीआई को हथियार बनाकर वह भाजपा नेताओं को डराने-धमकाने में जुटी है जबकि बोफोर्स मामले में सभी गवाह, व सबूत होने के बाद भी क्वात्रोची को अपने शिकंजे में नहीं लिया गया, इसलिए कि राजीव गांधी का नाम इस बोफार्स मामले से जुड़ा था। सीबीआई के एक पूर्व निदेशक का कहना कि क्वात्रोची को क्लीन चिट देना बिल्कुल गलत था, क्योंकि उसके बारे में सभी पुख्ता सबूत भारत सरकार व सीबीआई के पास था। सीबीआई का यह तक कहना कि क्वात्रोची का नाम इंटरपोल की मोस्ट वान्टेड सूची से हटा दिया जाय, जबकि पिछले 12 सालों से क्वात्रोची का नाम इंटरपोल की सूची में था। 19 साल पहले यह मामला प्रकाश में आया था, जब स्वीडन की हथियार कंपनी ने भारतीय सेना को बोफोर्स तोपे सप्लाई करने का सौदा किया, जिसमे 80 लाख डॉलर की दलाली खाई गई थी। उनका यह भी कहना कि सीबीआई वहीं करती है, जो उसे केंद्र सरकार कहती है, किस मामले को दबाना है, और किसको उठाना है यह वह सरकार के निर्देश पर ही वह करती है। छतीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी पर विधायकों की खरीद-फरोख्त से संबंधित सभी सुबूत सीबीआई को था, बावजूद कोई कार्रवाई अजीत जोगी पर नहीं की गई। मायावती के आय से अधिक मामले पर सीबीआई ने कहा कि मायावाती के खिलाफ इसके पास पर्याप्त सबूत है, लेकिन बाद में जब मायावती ने मनमोहन सिंह सरकार की मदद की तो उसी सीबीआई ने कहा कि इस आय से अधिक मामले में कोई दम नहीं है। 2007 में मुलायम सिंह के लिए भी सीबीआई का रोल कुछ ऐसा ही रहा। परमाणु समझौते के मसले पर वामपंथियों ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था, तो इस समझौते व अपने मामले को सीबीआई से कमजोर कराने के लिए कांग्रेस को समर्थन दिया, जो कांग्रेसी कल तक मुलायम सिंह का इस मामले पर विरोध जारी रखे हुये थे, उसी कांग्रेसी ने उनके खिलाफ अपनी याचिका तक वापस ले लिया। यह है कांग्रेसी नीति जहां अपने काम निकलवाने के लिए सीबीआई का बेजा उपयोग और उसे समर्थन देने वाले दलों को भी राहत मुहैया करायी जाती है। कांग्रेस को यह भी बताना चाहिए आंध्र प्रदेश के इसाई मुख्यमंत्री को हजारों करोड़ों की संपति कहाँ से आयी, मालूम हो कि इसी मुख्यमंत्री ने मंदिरों में आये दान को चर्चों में लगा दिया। सीबीआई कहाँ गायब हो गई शायद मनमोहन सिंह को इसका उत्तर नहीं मिल पा रहा होगा। लेकिन यदि भाजपा शासन में इस प्रकार का मामला रहता तो संगीन धाराओं के साथ वहां की सरकार को वह घेरने का प्रयास करती। मुम्बई में आदर्श सोसाईटी घोटाला देश के सामने है, कारगिल के शहीदों के लिए बने फलैट को कांग्रेसी नेता, अफसरों के बीच बांट दिया गया। उन सभी अधिकारियों को यह मुहैया कराया गया, जिसका इस्तेमाल वह विरोधियों को डराने धमकाने के लिए करती है। करोड़ों के फलैट को महज लाखों रुपये में आवंटित कर दिया गया। भाजपा शासित गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम करने के लिए केंद्र की सरकार कोई कोर -कसर नहीं छोड़ रही है। गोधरा कांड या उसके बाद के दंगे सोहराबुदीन कांड पर कांग्रेस वहाँ की सरकार को बदनाम कर रही है। जब कि यह स्थापित सत्य है कि सोहराबुदीन एक आतंकवादी था, उसके अलकायदा से सीधे संबंध थे, बावजूद उसको राष्ट्रवादी बताने वह उसे फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने के मामले को वह तूल दी है। सोहराबुदीन मामले पर वहां के आला पुलिस अधिकारियों व वहां के गृहमंत्री अमित शाह को जेल भेजने का काम सीबीआई के माध्यम से इस कांग्रसी सरकार ने किया है। राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि जिस प्रकार कांग्रेस भाजपा शासन को बदनाम कर रही है, सोहराबुदीन को फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने का मामला बनाकर नरेंद्र मोदी सरकार को बदनाम किये हुये है, सवाल तो माआवादी नेता आजाद के भी मुठभेड़ में मारे जाने का उठ रहा है, क्या इसके लिए क्या गहमंत्री चिदंबरम पर केश चलना चाहिए। लेकिन सीबीआई ने इस मामले में वहां के गृहमंत्री अमित शाह, पुलिस के कई आला अधिकारियों और बैंक के अधिकारियों सहित 15 लोागें पर आरोप तय किये हैं। पुलिस उप महानिरीक्षक, दो पुलिस अधीक्षक, दो पुलिस उप अधीक्षक, दो निरीक्षक, तीन उप निरीक्षक, गुजरात अपराध शाखा के डीजीपी एडीजीपी, व बैंक के दो शीर्ष अधिकारियों पर आरोप तय हुये हैं। उन पर 201, 302, 368, 365, 384 के तहत आरोप लगाये गये हैं। जो हत्या, अपहरण, सबूत नष्ट करने, और प्रताड़ना की धाराएं है। अभय चूडासामना, डीजी बंजारा, और रामकुमार पांडियान आज भी इस सोहराबुदीन मामले में जेल में हैं। केंद्र सरकार ने भाजपा के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी व गुजरात के विकास को रोकने के लिए सीबीआई को सुपारी दी है। केंद्र की जितनी भी जांच ऐजेसियां हैं मोदी के लिए खुफिया की तरह काम कर रही है। नरेंद्र मोदी को बदनाम करने वाली सीबीआई ने दिल्ली में हुये सिखों की हत्या में जगदीश टाईटर को क्लीन चिट दे दिया। इसको लेकर पूरे पंजाब व देश के कई कोने में सीबीआई के खिलाफ प्रदर्शन किया गया, कि वह केंद्र सरकार के ईशारे पर काम कर रही है। 15 जून 2004 को अमजद जीशान, जावेद और इशरतजहां को गुजरात पलिस ने मार गिराया। गुजरात पुलिस का दावा कि इन सभी लोगों का आतंकवादी संगठनों से संबंध था, और वे मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करना चाहते थे। केंद्र सरकार ने भी अपनी रिपोर्ट में इन सभी का लश्करे तौयबा के साथ संबंध बताया था। कांग्रेस की सरकार ने भाजपा शासित गुजरात सरकार को बदनाम करने के लिए उन सभी हथकंडो का प्रयोग किया, जो एक केंद्रीय शासन को नहीं करना चाहिए। गुजरात की पुलिस, वहां की सरकार, वहां की जांच ऐजेंसियों को तो बदनाम किया ही साथ ही वहां की अदालत पर भी अविश्वास जताते हुये इन मुकदमों की सुनवाई गुजरात से बाहर कराने को लेकर देश में बबाल काटा। सुप्रीम कोर्ट में भी इससे संबंधित याचिका दायर करने से वह पीछे नहीं रही। यानि हर तरीके से बदनाम करने का षडयंत्र लेकिन वहां की जनता नरेंद्र मोदी की छवि पर कोई संशय व्यक्त नहीं करते हुये उनके साथ खड़ी रही। किस प्रकार गुजरात के बडोदरा के बेस्ट बेकरी कांड को गुजरात से बाहर सुनवाई कराने के लिए कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों ने देश में बबाल पैदा किया था। गुजरात की न्यायपालिका पर सवालिया निशान खड़ा करते हुये उस पर पूरी तरह से अविश्वास जताया गया। बेस्ट बेकरी कांड की सुनवाई करने के बावत यह बात सुप्रीम कोर्ट में पहुंचाई गई। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए गुजरात से बाहर मुम्बई की अदालत में इसे स्थानांतरित कर दिया। इस बावत गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मेरी इसमें कोई स्वाभाविक रुचि नहीं है कि इसकी सुनवाई कहां होती है, लेकिन जिस प्रकार से गुजरात की न्यायपालिका पर अविश्वास जताया गया है, यह यहां की जनता व गुजरात के लिए ठीक नहीं है। जो अदालत बडोदरा, गांधीनगर में बैठी थी उसे स्थानांतरित कर मुम्बई के हवाले कर दिया गया। इस केस से संबंधित कुछ नहीं बदला केवल न्यायाधीश बदला। इस केस से संबंधित गुजरात पुलिस की इनक्वायरी, विटनेस, इनवेस्टीगेशन, व गुजरात पुलिस ने जिसे गिरफतार किया था, उसी के आधार पर दोषयों को सजा सुनाई गई। गुजरात की न्यायपालिका वहां की पुलिस और वहां की जनता को बदनाम करने के लिए सभी रणनीति को अपनाया न्यायपालिका को बदनाम करने का षडयंत्र तो कांग्रेस ही कर सकती है, क्योंकि इसके पहले भी न्यायपालिका के फैसले को बदलने, और न्यायपालिका के दिये कई अहम निर्णय को वह लटकाये हुये है। हम दूसरा उदाहरण गुजरात से ही संबंधित बिलकिश बानो केस का देते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे गुजरात की न्यायालय से मुम्बई स्थानांतरण कर दिया। पहले इस मुकदमे की सभी स्तर पर जांच गुजरात पुलिस ने की तीन साल बाद इसे सीबीआई को सौंप दिया गया। पहले यह मामला गुजरात की न्यायालय में था बाद में उसे मुम्बई भेजा गया। वहां गुजरात पुलिस की जार्चशीट रखी गई, गुजरात पुलिस के ऐविडेंस रखे गये, गुजरात पुलिस का इनवेस्टिगेशन रिपोर्ट रखे गये उसके बाद बीच में सीबीआई आयी, उसको लगा कि इस केस में और कुछ होना चाहिए तो नई चार्ज शीट रखी गई। नये लोगों को फिर से गिरफतार किया गया, नई इनवेस्टिगेशन रिपोर्ट लिखी गई, नये ऐविइेंस रखे गये, एक ही मामले पर दो चार्जशीट। मुम्बई की अदालत ने अपना फैसला सुनाया सजा हुई दोषियों को सजा हुई वहां के इनवेस्टिगेशन रिपोर्ट, वहां के विटनेस वहां की जार्चशीट के कारण, जिसे गुजरात पुलिस ने गिरफतार किया था उसे सजा सुनाई गई। बाद में जो सीबीआई ने लोगों को पकड़ा था, सभी निर्दोष साबित हुये। गुजरात पुलिस की चार्जशीट के आधार पर ही सबको सजा हुई। जिन लोागें को सीबीआई ने गिरतार किया था, उसमें एक को मामूली सजा सुनाई गई, जिसे सीबीआई कहती है कि मेरी जीत हुई है, लेकिन जिस एक सिपाही को सजा हुई है, वह इसलिए कि सीबीआई को उसने बिलकिस बानो प्रकरण से संबंधित सभी कागजात को अंग्रेजी अनुवाद करा कर देने में विलंब कर दिया था। इसी कारण इसे सजा सुनाई गई्र। कांग्रेस की नीति आरंभ से ही भाजपा शासित राज्यों व पार्टी नेताओं को बदनाम करने की रही है।, लेकिन बहुत प्रयास करने के बावजूद वह इस घिनौने कार्य में सफल नहीं रही है। बहरहाल कांग्रेस की जो नीति रही है, वह देश में अलगावाद, आतंकवाद, नक्सलवाद, की समस्या को समाधान करने के स्थान पर भाजपा के मंत्रियों, विधायकों, और वहां की सरकार को बदनाम करने की। कांग्रेस अजमेर बम बलास्ट में संघ के अंद्रेश कुमार का नाम खसीदना चाहती है, वह अपने लोागें को बता रही है संध देश में आतंकवादी कार्रवाही में संलग्न है। लेकिन इस वर्तमान सरकार को यह पता होना चाहिए कि संघ पर इसके पहले भी नेहरु, इंदिरा ने बदनाम करने का प्रयास व उसे प्रतिबंधित किया था। लेकिल उसका निष्कर्ष क्या निकला, सभी को पता है।
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