शनिवार, 13 सितंबर 2008

शांति के लिए जरूरी शर्त



पाकिस्तान के अस्थिर होने से भारत की अनेक समस्याएं समाप्त होती देख रहे हैं भरत वर्मा

शांति के लिए जरूरी शर्त भारतीय ही भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। कारण बिल्कुल सीधा है। एक औसत भारतीय राष्ट्र का निर्माण नहीं करता। वह केवल अलग-थलग रहता है। उसके लिए व्यक्तिगत लाभ तमाम अन्य प्रयोजनों, जिनमें राष्ट्रीय हित भी शामिल हैं, पर भारी पड़ते हैं। इसीलिए बहुत से लोग अपने विचारों में कश्मीर के अलग होने का राग अलापने लगे हैं। अगर उनकी व्यक्तिगत संपत्ति या परिजन आतंकियों द्वारा बंधक बना लिए जाते तो उनके द्वारा मचाई जाने वाली हायतौबा का अनुमान लगाया जा सकता है। दरअसल पिछले साठ सालों में भारत संघ को मजबूत करने के बजाय राजनेता वोट बैंक को बढ़ाने के लिए पंथऔर जाति के आधार पर समाज में भेद पैदा करने में लगे रहे। देश के नागरिकों को एकता के सूत्र में बांधने तथा उनके लिए विकास के रास्ते खोलने के बजाए उन्होंने गहरी संकीर्णता दिखाई। परिणाम यह हुआ कि सत्ता के खिलाफ अलग-अलग गुट खड़े हो गए। अधिकांश ने आर्थिक तंगी और न्याय न मिलने के कारण यह रास्ता अपनाया। इन असंतुष्ट समूहों का फायदा भारत विरोधी बाहरी शक्तियां उठा रही हैं।
अनेकता में कभी एकता नहीं हो सकती। एकता के लिए पूरे संघ में काफी हद तक समान कानून की जरूरत पड़ती है। नई दिल्ली तब से खुद अपनी दुश्मन बन बैठी है जब से इसने विशुद्ध मुस्लिम राष्ट्र का निर्माण होने दिया। अगर पाकिस्तान के गठन के बाद से भारत चैन से पलक तक नहीं झपका पाया है तो इसका दोष किसी और के नहीं, बल्कि खुद अपने मत्थे मढ़ना होगा। भारत पर युद्ध थोपने के अलावा पाकिस्तान ने अपना तथाकथित इस्लामिक एजेंडा कश्मीर घाटी में आगे बढ़ाया। स्थानीय लोगों की सहायता से उसने कश्मीर में अल्पसंख्यक समुदायों की विशिष्ट संस्कृति का सफाया कर डाला। अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए भारतीय नेतृत्व ने इन शत्रु शक्तियों को असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों का पक्षधर कानून लाने में सहयोग दिया। बाद में उच्चतम न्यायालय द्वारा अवैध ठहराने के बाद इस पर रोक लगी, किंतु तब तक नुकसान हो चुका था। करीब डेढ़ करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठियों ने समाज में अशांति मचा दी। बीजिंग की शह पर इस्लामाबाद, ढाका और अब काठमांडू के पास एकसूत्रीय काम है-घाटी और पूर्वोत्तर को भारत से अलग करना। इसके अलावा वे माओवादियों को सहायता पहुंचा रहे हैं, जो भारत के करीब 40 फीसदी भूभाग में फैल चुके हैं। नई दिल्ली की विचित्र नीतियों ने अलगाववाद को बढ़ावा दिया है। भारतीयों को घाटी और पूर्वोत्तर में जमीन खरीदने और उद्योग-धंधे विकसित करने के लिए प्रोत्साहन देने के बजाए इस तरह की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिए गए। दूसरी तरफ पाकिस्तान और बांग्लादेश ने सोची-समझी रणनीति के तहत वहां कट्टरपंथियों को बसा दिया। कर्तव्य निभाने में विफल भारतीय संघ के कारण ही घाटी में विरोध प्रदर्शन का बदसूरत अलगाववादी चेहरा दिखाई पड़ रहा है। घाटी को भारत की मुख्यधारा में लाने और देश की अखंडता बनाए रखने के लिए नीतियों में आमूल-चूल बदलाव की आवश्यकता है। हमेंउद्योगीकरण के साथ-साथ वहां पंथनिरपेक्ष मिली-जुली आबादी को बसाना होगा।
बहुत से लोग अपनी सुविधा के हिसाब से इस मिथक में विश्वास व्यक्त करते हैं कि पाकिस्तान में स्थिरता भारत के पक्ष में है। यह गलत अवधारणा है। सच्चाई यह है कि 1947 से ही भारतीय संघ के लिए पाकिस्तान एक बुरी खबर रहा है-चाहे वह स्थिर रहा हो या अस्थिर। अस्तित्व के साठ साल के दौरान पाकिस्तान में स्थिरता के संक्षिप्त कालखंड ही देखने को मिले हैं। स्थिरता के इन चरणों में पाकिस्तान आतंकवाद, नकली नोट के कारोबार तथा नशीले पदार्थो की तस्करी में लिप्त रहा है। इसके अलावा वह भारतीय सीमा में आत्मघाती दस्ते और हथियारबंद आतंकियों की खेप भेजता है, जिससे उपयुक्त समय पर बगावत की जा सके। यही नहीं, भारत के बंटवारे की साजिश को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान ने चीन और अन्य शक्तियों के साथ हाथ भी मिला लिया है। जबरदस्त आंतरिक अंतरविरोधों के चलते पाकिस्तान पूरी तरह विफल होने के कगार पर है और यह बस समय का फेर है कि ऐसा कब होता है? पाकिस्तान के पतन से भारत को अनेक लाभ होंगे। पाकिस्तान ने जो आत्मघाती रास्ता चुना है वह उसे या तो टुकड़े-टुकड़े कर कई राज्यों में विखंडित कर देगा या फिर वहां के हालात अपने आप हाथ से बाहर हो जाएंगे। दोनों ही सूरतों में बलूचिस्तान स्वतंत्र हो जाएगा। इससे भारत के लिए अवसरों की खिड़की खुल जाएगी। ऐसा हुआ तो ग्वादर बंदरगाह चीन के हाथ नहीं लग पाएगा। हमें बलूचिस्तान में अपनी साख का बड़ी समझदारी से फायदा उठाना चाहिए। सिंध और पंजाब के अलावा शेष अन्य इलाकों में से अधिकांश हमारे नए मित्र होंगे। पाकिस्तान के टुकड़े होने से जेहाद के कारोबार को जबरदस्त आघात लगेगा, क्योंकि इसकी धुरी पाकिस्तान ही है। इसके अलावा पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के क्रियाकलापों पर भी अंकुश लगेगा। पाकिस्तान के अशक्त होने से चीन की एक भुजा भी कट जाएगी। भारत के लिए प्रमुख खतरा चीन ही है।
यद्यपि हम चीन के साथ रचनात्मक संबंध कायम रखते हैं, फिर भी हमें परदे के पीछे के खेल को खत्म करने का प्रयास करना ही चाहिए। पाकिस्तान के बिखरने से न केवल अफगानिस्तान में काफी हद तक स्थिरता आ जाएगी, बल्कि मध्य एशिया के ऊर्जा स्त्रोतों तक भारत के रास्ते खुल जाएंगे। इसके अलावा यह अपेक्षा भी की जा सकती है कि नेपाल और बांग्लादेश में भारत विरोधी शक्तियां हतोत्साहित होंगी और उनका प्रभाव घटेगा। घाटी में हालिया उपद्रव के दौरान मुझसे एक जनरल ने इसका हल पूछा था। मैंने कहा, पाकिस्तान को मिटा दो। खतरा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। निकट भविष्य में एक राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान का अंत लगभग निश्चित है। दूरदृष्टि का परिचय देते हुए भारत को मध्य एशिया में अपने हित सुरक्षित रखने के लिए पाकिस्तान के पश्चात के परिदृश्य पर मंथन शुरू कर देना चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ वोटों का व्यक्तिगत अल्पकालिक लाभ उठाने के लिए अदूरदर्शी राजनेता राष्ट्रीय हितों की अनदेखी कर रहे हैं। (लेखक इंडियन डिफेंस रिव्यू के संपादक हैं)

7 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

Kavita Vachaknavee ने कहा…

नए चिट्ठे का स्वागत है. निरंतरता बनाए रखें.खूब लिखें,अच्छा लिखें.

शोभा ने कहा…

अच्छा लिखा है. स्वागत है आपका.

रंजन राजन ने कहा…

हिंदी दिवस पर हिंदी चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है।
आगाज सचमुच शानदार है। अंजाम और भी जानदार हो, इसके लिए शुभकामनाएं।

شہروز ने कहा…

श्रेष्ठ कार्य किये हैं.
आप ने ब्लॉग ke maarfat जो बीडा उठाया है,निश्चित ही सराहनीय है.
कभी समय मिले तो हमारे भी दिन-रात आकर देख लें:

http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
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प्रदीप मानोरिया ने कहा…

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है बधाई कृपया मेरे ब्लॉग पर पधारें

Hari Joshi ने कहा…

आज आप किसी राष्‍ट्र को मिटाने की सोच भी कैसे सकते हो। खैर, ब्‍लाग जगत में आपका स्‍वागत है।